कोपिंग मैकेनिज्म अथवा सहन करने का तरीका एक ऐसी अवधारणा है जिसका अर्थ हम हमारी ‘सामंजस्य बिठाने कि क्षमता’ से लगा सकते है हम सभी जीवन में किसी न किसी प्रकार के स्ट्रेस अथवा तनाव से दो चार होते है किन्तु इस स्ट्रेस अथवा तनाव या दर्द का शमन हम किस प्रकार से करते है यह महत्वपूर्ण होता है कोपिंग मैकेनिज्म हमारे द्वारा सीखे गए वही तरीके है जो सकारात्मक अथवा नकारात्मक दोनों ही प्रकार के हो सकते है यदि हम इमोशंस/भावनाओं की संभाल सही रूप से करते है तो हमारा व्यवहार सकारात्मक रूप में नज़र आता है वहीं अगर भावनाओं को गलत तरीके से सँभालते है तो हमारा व्यवहार भी नकारात्मक रूप में सभी के सामने परिलक्षित होता है
सकारात्मक कोपिंग मैकेनिज्म को हम निम्न उदहारण द्वारा समझ सकते है यदि किसी व्यक्ति को किसी प्रकार के तनाव का अनुभव हुआ है और उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप वह अपनी क्षमताओं और सेंसेस का सही उपयोग करता है, विचलित नहीं होता है,उचित संवाद करता है, वस्तुस्थिति को स्वीकार करता है,या सम्बंधित व्यक्ति को क्षमा करता है, तो सकारात्मक व्यवहार का यह तरीका उस व्यक्ति के सकारात्मक कोपिंग मैकेनिज्म का परिणाम कहलाएगा वही इसके ठीक विपरीत यदि कोई व्यक्ति तनाव में होने पर हिंसा करता हे,गलत शब्दों का इस्तमाल करता हे,वस्तुस्थिति को अस्वीकार कर कोई गलत धारणा का स्वनिर्माण करता हे,स्वयं को क्षति पहुचाता है,शराब आदि व्यसन करता है तो व्यक्ति के इस प्रकार के नकारात्मक व्यवहार का कारण उसका नकारात्मक कोपिंग मैकेनिज्म कहलाएगा अतः कोपिंग मैकेनिज्म हमारे व्यवहार के वह तरीके है जो स्थिति विशेष में हम करते है अतः व्यक्ति के व्यक्तित्व का अध्यन करते समय एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा अपने सेवार्थी के कोपिंग मैकेनिज्म को जानना और सेवार्थी के गलत कोपिंग मैकेनिज्म को समझकर उसे सुधारना बहुत जरुरी है
कोपिंग मैकेनिज्म की परिभाषा -मनोवैज्ञानिक रिचर्ड लाज़रूस और सुसान फोकमेन के अनुसार “कोपिंग मैकेनिज्म हमारी समझ एवं व्यवहार द्वारा निरंतर किया जाने वाला वह प्रयास है जो किसी विशेष आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया जाता है सामान्यतः कोपिंग मैकेनिज्म का अनुप्रयोग तनावपूर्ण स्थिति से बाहर निकलने के लिए किया जाता है”