सिगमंड फ्रायड इस सिद्धांत के जन्मदाता है इस सिद्धांत के अनुसार हमारे मस्तिष्क का अनकोंशियस या अचेतन भाग हमारे व्यवहार को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है हमारा व्यवहार अचेतन मन कि तीन अवस्थाओं जिसे फ्रायड ‘इद’, ‘इगो’ और ‘सुपर इगो’ नाम देते है से मिलकर बना होता है जैसा कि आप को मालूम होगा फ्रायड के अनुसार ‘इद’अंग्रेजी के प्लेजर प्रिंसिपल अथवा आनंद के सिद्धांत पर कार्य करता है और अपनी इच्छाओं की पूर्ति तुरंत करना चाहता है मन का यह हिस्सा तुरंत परिणाम चाहता है और इसके सोचने का आकाश असीमित है यह अपनी क्षमताओं से कई गुना अधिक भी कल्पना कर लेता है वही ‘इगो’ के बारे में ऐसा कहा गया है कि वह ‘इद’द्वारा निर्मित डिमांड एवं बाहरी दुनिया की वास्तविकताओं के मध्य समझोता करवाता है और तीसरा भाग ‘सुपर इगो’ है जो हमारे समाज के आदर्श और जीवन मूल्यों को ध्यान में रखकर सोचता है वह ‘सुपर ईगो’ ही है जो न सिर्फ ‘इद’की असीमित कल्पनाओं /इच्छाओं को नियंत्रित करता है बल्कि अनैतिक अथवा सामाजिक रूप से अस्वीकार्य आशाओं के निर्माण होने पर ‘इगो’ को भी ऐसी कामनाओं को नियंत्रित करने का निर्देश देता है अच्छे व्यक्तित्व के लिए सर्वाधिक आवश्यक यह है की दो विपरीत विचार (इद-सुपर इगो) के मध्य कार्य करने वाले ‘इगो’ द्वारा दोनों विचारों के मध्य तालमेल स्थापित किया जाए, वस्तुतः किसी व्यक्ति के जीवन में अचेतन मन के इन तीनो ही तत्वों के मध्य परस्पर क्रिया चलती रहती है जो उस व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है परन्तु ऐसा माना जाता है कि हमारा ‘इगो’ जितना मजबूत होगा व्यक्तित्व भी उतना ही संतुलित होगा